सेंट्रल जेल के बैरक नंबर 9 में लिखी गई वो कविता जिससे हिल गई थी अंग्रेजी हुकूमत, जानें पूरी कहानी

मनीष शरण

ADVERTISEMENT

ChhattisgarhTak
social share
google news

100 साल पहले छत्तीसगढ़ के बिलासपुर सेंट्रल जेल (Bilaspur Central Jail) के बैरक नंबर 9 में ‘कैदी नंबर 1527’  ने एक कविता लिखी थी. उस कविता के बोल इतने शक्तिशाली थे कि अंग्रेजी हुकूमत की चूलें हिल गईं थीं. वो कैदी कोई और नहीं बल्कि ख्यातिप्राप्त कवि, लेखक और पत्रकार पंडित माखनलाल चतुर्वेदी (Makhanlal Chaturvedi) थे जिनकी कविता ‘पुष्प की अभिलाषा’ (Pushp ki Abhilasha) आज भी जन-जन में देशप्रेम का संचार करती है.बिलासपुर सेंट्रल जेल में लिखी गई उनकी यह कविता अब तक युवाओं को प्रेरित कर रही है.

केंद्रीय जेल बिलासपुर के बैरक नंबर 9 में आजादी के दीवानों में जोश भरने के लिए राष्ट्र कवि पं. माखन लाल चतुर्वेदी ने पुष्प की अभिलाषा कविता लिखी थी. दरअसल, वह दौर असहयोग आंदोलन का था. पं.चतुर्वेदी ने युवाओं को प्रेरित करने के लिए साल 1921 जून को शहर के शनिचरी बाजार स्थित मंच पर ब्रिटिश गवर्नमेंट के खिलाफ जबरदस्त भाषण दिया था. इसके बाद वे जबलपुर चले गए थे, जहां से उनकी गिरफ्तारी हुई. 5 जुलाई 1921 को बिलासपुर स्थित केंद्रीय जेल में उन्हें बंद किया गया. वे यहां एक मार्च 1922 तक रहे. यहीं उन्होंने ‘पुष्प की अभिलाषा’ की रचना की और यह कविता आजादी के दीवानों में जोश भरने वाली साबित हुई.

कैदी नंबर-1527 से थी पहचान

जेल में उनका रिकॉर्ड कैदी नंबर-1527, नाम माखनलाल चतुर्वेदी, पिता नंदलाल, उम्र-32 वर्ष, निवास जबलपुर दर्ज है. उनका क्रिमिनल केस नंबर 39 था. आगे एक मार्च 1922 को उन्हें केंद्रीय जेल जबलपुर स्थानांतरित कर दिया गया था. बिलासपुर सेंट्रल जेल के जेल सुपरीटेंडेंट सोमेश मंडावी से मिली जानकारी के अनुसार, माखनलाल चतुर्वेदी की रचनाएं और उनके जेल में बिताए स्मृतियों को आज भी जेल प्रशासन ने संभाल कर रखा है.

ADVERTISEMENT

स्मृतियां आज भी शेष

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और अमर साहित्यकारों में पंडित माखनलाल चतुर्वेदी का नाम बड़े ही गौरव के साथ लिया जाता है और बिलासपुर सेंट्रल जेल भी उन्हीं की वजह से इतिहास के पन्नों में अमर हो गया. जेल प्रशासन ने हमेशा उनकी स्मृति को सहेज कर रखने के लिए बैरक नंबर 9 को हिफाजत से रखा और उनकी स्मृति में जेल के भीतर शिलालेख भी लगाया. हालांकि बाद में डायरेक्ट नंबर 9 को जेल में हो रहे अधोसंरचना विकास की वजह से हटाना पड़ा लेकिन इस बीच जेल प्रशासन और तत्कालीन जेल अधीक्षक ने उसे उनकी स्मृति को बचाए रखने के लिए विशाल शिलालेख स्थापित किया. साथ ही जेल के प्रवेश द्वार पर एक पृथक से शिलालेख लगाए गए जिसमें सबसे पहला नाम अमर कवि साहित्यकार और स्वतंत्रता सेनानी पंडित माखनलाल चतुर्वेदी का अंकित किया गया.

क्या कहते हैं जानकार?

वरिष्ठ पत्रकार रुद्र अवस्थी बिलासपुर सेंट्रल जेल में स्थापित पंडित माखनलाल चतुर्वेदी के बैरक नंबर 9 के गवाह हैं.  इनकी मानें तो वे अपने शुरुआती दिनों के पत्रकारिता के दौरान जब कभी भी बिलासपुर सेंट्रल जेल जाया करते तो उन्हें पंडित माखनलाल चतुर्वेदी की रचनाएं और उनके किए गए कामों के बारे में नए तथ्य जानने को मिलते थे. उन्होंने बताया कि किस तरह से उन्होंने बैरक नंबर 9 को पृथक से अस्तित्व में आते हुए देखा. बाद में उनके नाम से जेल के प्रांगण के भीतर बनाए गए शिलालेख की स्थापना के दौरान भी उनकी उपस्थिति रही.

ADVERTISEMENT

महान कवि की स्मृतियां कब होंगी डिजिटल ?

आधुनिकता के दौर में जब युवा पीढ़ी को सब कुछ इंटरनेट और गूगल पर चाहिए, ऐसे में बिलासपुर सेंट्रल जेल प्रबंधन और बिलासपुर शहर के वरिष्ठ इतिहासकार इस बात से इत्तेफाक रखते हैं कि उन्हें स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और महान साहित्यकार पंडित माखनलाल चतुर्वेदी की रचनाओं और उनकी स्मृतियों को भी डिजिटल रूप में संरक्षित करने की जरूरत है. युवा पीढ़ी अपने देश के महान कवियों को और उनकी रचनाओं को जानें पढ़ें. इसके लिए जरूरी है की इतिहास की यह बातें उन्हें बेहद आधुनिक माध्यम अर्थात डिजिटल रूप में उपलब्ध कराई जाएं. बिलासपुर सेंट्रल जेल को भी अपनी एक पृथक वेबसाइट बनाने की जरूरत है जहां बिलासपुर सेंट्रल जेल से जुड़े इतिहास के अलावा पंडित माखनलाल चतुर्वेदी की कविताओं और उपलब्धियां की भी डिजिटल फुटप्रिंट होनी चाहिए. इस एक बात पर बिलासपुर के वरिष्ठ पत्रकार और इतिहासकार रुद्र अवस्थी और बिलासपुर सेंट्रल जेल के जेल सुपरीटेंडेंट उमेश मंडावी एकमत नजर आते हैं.

ADVERTISEMENT

ये है मशहूर कविता ‘पुष्प की अभिलाषा’

 

चाह नहीं मैं सुरबाला के

गहनों में गूँथा जाऊँ,

चाह नहीं, प्रेमी-माला में

बिंध प्यारी को ललचाऊँ,

चाह नहीं, सम्राटों के शव

पर हे हरि, डाला जाऊँ,

चाह नहीं, देवों के सिर पर

चढ़ूँ भाग्य पर इठलाऊँ।

मुझे तोड़ लेना वनमाली!

उस पथ पर देना तुम फेंक,

मातृभूमि पर शीश चढ़ाने

जिस पथ जावें वीर अनेक

इसे भी पढ़ें- आदिवासी ‘वीर’ जिनके शव को अंग्रेजों ने तोप से उड़ा दिया था… जानें पूरी कहानी

    follow on google news
    follow on whatsapp

    ADVERTISEMENT