अबूझमाड़िया पिता का छलका दर्द- ‘बच्चे कंदमूल खाकर मिटा रहे हैं भूख, घर में नहीं है चावल…’

इमरान खान

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Abujmarh-  छत्तीसगढ़ शासकीय उचित मूल्य दुकान संचालक विक्रेता कल्याण संघ के प्रदेशव्यापी हड़ताल का असर नारायणपुर जिले के अबूझमाड़ के ग्रामीणों पर सबसे ज्यादा दिख रहा है. दो दिनों तक पैदल चलकर राशन दुकान पहुंचने वाले ग्रामीण राशन दुकानों में तालाबंदी होने से मायूस लौट रहे हैं. अबूझमाड़ से राशन लेने आए एक पिता का दर्द तब छलक पड़ा जब उनके भूखे बच्चों की पेट की आग बुझाने के लिए राशन दुकान में तालाबंदी होने की वजह से राशन नहीं मिला. बेबस पिता ने बताया कि बच्चे भूखे हैं,घर में अनाज खत्म हो चुका है. कंदमूल खाकर जीवन यापन कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि बरसात के दिनों में नदी-नालों को पार कर दो दिनों की जद्दोजहद के बाद ओरछा राशन लेने आए थे, उन्हें पता नहीं था कि राशन दुकान में हड़ताल चल रही है जिसकी वजह से उन्हें राशन नहीं मिलेगा.

जिले के अबूझमाड़ इलाके के निवासरत ग्रामीणों की विडंबना है कि मीलों के सफर में कई नदी-नाले पार करने के बाद भी उनको उनके हिस्से का अनाज नहीं मिल पा रहा है. इन्हें अपने हक का अनाज पाने अंदरूनी गांव से ब्लॉक मुख्यालय ओरछा पहुंचना पड़ता है. इधर पीडीएस दुकानों के राशन विक्रेताओं के 6 सूत्रीय मांगों को लेकर हड़ताल की वजह से दुकानों में ताले लटके हुए हैं. अबूझमाड़ के दर्जनों गांव में सड़क की व्यवस्था नहीं होने की वजह से ब्लॉक मुख्यालय ओरछा में 11 दुकानें का संचालन कर राशन का वितरण किया जाता है. 50 से 60 किलोमीटर दूर से यहां राशन लेने के लिए ग्रामीण आते हैं. उफनती नदी-नालों को पार कर जान जोखिम में डालकर ग्रामीण अपनी पेट की आग बुझाने को मजबूर हैं.

अबूझमाड़ियों का दर्द

राशन के लिए भटक रहे धनीराम वड्डे बताते हैं, “मैं अबूझमाड़ का हूं 1 तारीख से चावल लेने आता हूं. आना जाना लगा रहता है. हम परेशान हैं लेकिन राशन दुकान बंद रहता है. मैं गरीब आदमी हूं आज 4 से 5 दिन हो गया राशन नहीं मिल रहा है. कब काम में जाएंगे और कब राशन मिलेगा? नदी नाला पार करके आते हैं बस हमें चावल चाहिए.”

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श्यामलाल आंचला भी अपना दर्द बयां करते हुए हैं,  “मैं अबूझमाड़ क्षेत्र से आता हूं.दो नदी पार कर राशन लेने के लिए ओरछा आया हूं. घर में अनाज खत्म हो चुका है. हमारे बच्चे भूखे हैं. भूख लगने पर जंगल से लाकर कंदमूल खा कर रह रहे हैं. राशन के लिए आने जाने में बहुत परेशानी होती है, हमें चावल चाहिए.”

गांवों तक राशन की पहुंच नहीं, क्यों?

नक्सल गतिविधियों की वजह से अंदरूनी इलाकों में सड़कों का निर्माण नहीं हो पा रहा है. इसकी वजह से राशन गांव की दहलीज तक नहीं पहुंच पा रही है. फूड ऑफिसर एफके डड़सेना ने बताया कि पीडीएस दुकान के विक्रेताओं को जो हड़ताल पर है उन्हें नोटिस जारी किया जा रहा है. वे तत्काल काम पर वापस लौटे, जिससे उपभोक्ताओं को शत- प्रतिशत राशन का वितरण हो सके। हड़ताल जारी रखने वाले संचालकों को नोटिस देकर वैधानिक कार्रवाई की जाएगी. डड़सेना ने कहा, नारायणपुर जिले की 42 दुकान वर्षा ऋतु में टापू बन जाती है. यहां के लोगों को सुविधा जनक बनाने के लिए जिला प्रशासन ने यह तय किया है ओरछा ब्लाक के 35 दुकान तथा नारायणपुर ब्लाक के 7 राशन दुकानों में चार माह जून सितंबर तक का चावल भंडारण कर दिया गया है. 16 हजार क्विंटल भंडारण से 11 हजार क्विंटल राशन का वितरण हो चुका है. हितग्राही वर्षा ऋतु में नदी-नाला पार आते हैं.

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क्यों बंद हैं दुकानें?

संचालक विक्रेता कल्याण संघ के जिला अध्यक्ष रोमन नाग ने बताया कि उनकी मुख्य मांग कमीशन में बढ़ोतरी करने के साथ मानदेय व्यवस्था लागू करने की हैं. उन्होंने कहा, “कोरोना काल में हम लोगों ने जान जोखिम में डालकर राशन वितरण किए हैं. उस दौरान जब कोई घर से भी निकलना नहीं चाहता था तब हम लोगों ने राशन का वितरण किया हैं. अबूझमाड़ से राशन लेने के लिए हितग्राही दुकान पहुंचते हैं तो उन लोग को कहना पड़ता राशन दुकान बंद किया गया है. हम लोग को भी अच्छा नहीं लगता है. नदी-नाला पर कर हितग्राही राशन लेने पहुंचते हैं.”

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