जानिए, कांग्रेस को फर्श से अर्श पर पहुंचाने वाले भूपेश बघेल की पूरी कहानी
कहते हैं कोई हीरो नहीं होता. कोई हीरो बन भी नहीं सकता. ये तो हालात होते हैं जो किसी को हीरो या फिर किसी को…
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कहते हैं कोई हीरो नहीं होता. कोई हीरो बन भी नहीं सकता. ये तो हालात होते हैं जो किसी को हीरो या फिर किसी को विलेन के तौर पर गढ़ देते हैं. भूपेश बघेल भी इन्हीं हालातों की देन हैं. दरअसल, छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश ने ना सिर्फ पार्टी को फर्श से अर्श तक पहुंचाया. बल्कि देश के मजबूत नेता बनकर भी उभरे.
बात मई 2013 की है. जब कांग्रेस की परिवर्थन यात्रा पर नक्सलियों ने हमला कर दिया. हमले में छत्तीसगढ़ कांग्रेस की लीडरशिप का एक हिस्सा साफ हो गया. बड़े नाम के तौर पर बचे थे सिर्फ- अजीत जोगी. लेकिन इस हमले के बाद जोगी अपनी साख गंवा बैठे थे. ऐसे में कमान आ गई तीखे तेवर रखने वाले शख्स के पास. नाम था- भूपेश बघेल… शुद्ध तौर पर संगठन के आदमी. तीखे तेवर, जनता में पकड़ और संगठन को साधने वाला दिमाग. किसान परिवार से आने वाले बघेल 25 साल की उम्र में अपने दम पर राजनीति में आए. साल था- 1985. दुर्ग के रहने वाले थे, तो वहीं से ही सियासत की शुरुआत की. दुर्ग उस जमाने में कांग्रेस के दिग्गज नेता चंदूलाल चंद्राकर का गढ़ हुआ करता था. ऐसे में बघेल ने सियासत का ककहरा चंद्राकर से ही सीखा.
चंद्राकर के तीन सबक, जो हमेशा काम आए
भूपेश बघेल ने एक इंटरव्यू में बताया था कि उनके राजनीतिक गुरु चंद्राकर ने उन्हें तीन सबक सिखाए थे, जो हमेशा काम आए. पहला- कभी मीडिया के जरिए सियासत चमकाने की कोशिश नहीं करना. दूसरा- घर चलाने के लिए बाप-दादा के धंधे पर ही निर्भर रहना और सियासत पेट भराई का जरिया मत बनाना. तीसरा- आलाकमान के आदेश के खिलाफ कभी बगावत नहीं करना.
भतीजे के हाथों मिली पहली हार
फिर आया वो साल, जब भूपेश बघेल ने पहला चुनाव जीता. साल- 1993. सीट थी- दुर्ग जिले की पाटन. इस सीट से लगातार जीतते रहे. सिवाए साल 2008 के. और इस साल वे अपने भतीजे और बीजेपी उम्मीदवार विजय बघेल से हार गए. राजनीतिक सफर की बात करें तो वो बघेल मध्य प्रदेश की दिग्विजय सिंह की सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे. 1990 से 1994 तक जिला युवा कांग्रेस कमेटी दुर्ग के अध्यक्ष रहे. 1994-95 में कांग्रेस के उपाध्यक्ष चुने गए. 1999 में मध्यप्रदेश सरकार में परिवहन मंत्री रहे. 2000 में जब छत्तीसगढ़ राज्य बना और कांग्रेस की सरकार बनी तब जोगी सरकार में वे कैबिनेट मंत्री रहे. 2013 में पाटन से जीत दर्ज की. और फिर 2014 में उन्हें छत्तीसगढ़ कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया.
वेंटिलेटर पर पड़ी कांग्रेस को दी संजीवनी
2014 में जिस कांग्रेस की कमान बघेल के हाथ आई वो बुरी तरह से जंग खाई हुई थी. 15 साल सत्ता से बाहर रहे कांग्रेसी बिखर चुके थे. जिन्हें समेटने के लिए बघेल ने सबसे पहले जमीन का रास्ता लिया. कस्बे और गांव के दौरे शुरू किए. पुराने कार्यकर्ताओं को मनाया. वेंटिलेटर पर पड़ी कांग्रेस के लिए ये दवा सबसे ज्यादा असरदार साबित हुई. 2016 से कांग्रेस का काम दिखाई देने लगा. कांग्रेस ने विरोध के चलते बीजेपी सरकार को अपने कदम कई जगह पीछे खींचने पड़े.
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सीडी कांड में 14 दिन जेल में रहते ही बढ़ा कद
अक्टूबर 2017 में छत्तीसगढ़ सरकार के मंत्री राजेश मूणत की कथित सेक्स सीडी पर विवाद शुरू हुआ. आरोप लगा कि बघेल सेक्स सीडी की कॉपी बंटवा रहे थे. सितंबर 2018 में भूपेश बघेल को सीबीआई ने गिरफ्तार कर लिया. विद्रोही की तरह जेल गए और 14 दिन जेल में ही रहे. जो गिरफ्तारी बघेल का करियर खत्म कर सकती थी, उसे भुनाने में वो कामयाब रहे. जेल से छूटे तो सियासी कद और बढ़ गया.
आलाकमान ने बघेल के नाम पर ही क्यों लगाई मुहर?
2018 में कांग्रेस सत्ता में लौटी. भूपेश बघेल को सीएम बने. अब सवाल उठा कि कांग्रेस ने बघेल को ही क्यों चुना? दरअसल, भूपेश बघेल ओबीसी समुदाय से आते हैं. और छत्तीसगढ़ में ओबीसी की आबादी करीब 46% है. जो राज्य की सबसे बड़ी आबादी है. और संगठन की कमान बघेल के हाथों में ही थी. नेताओं पर अच्छी पकड़ भी रखते हैं. जिसके बाद आलाकमान ने भूपेश बघेल के नाम पर लगा दी सीएम की मुहर.
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